कनक गहलोत |
विज्ञापन का वास्तविक अर्थ ही लुप्त हो गया है। अधिक से अधिक ऐसे खर्च करके लुभावने विज्ञापन तैयार किए जाते हैं जिससे कि ग्राहकों को आकर्षित किया जा सके।बड़े बड़े अभिनेता या खिलाड़ियों द्वारा विज्ञापन करवाया जाता है। यह खिलाड़ी और अभिनेता बड़े रोचक ढंग से अपनी प्रस्तुति देते हैं ,अपने अभिनय और हाव-भाव से ग्राहकों को सम्मोहित करते हैं। फिर अगर कोई वस्तु उपयोगी ना हो तो भी उपयोगी लगने लगती है। आवश्यकता ना हो तब भी वह वस्तु खरीदी जाती है।
विज्ञापन महत्वपूर्ण है उत्पादक और उपभोक्ता दोनों के लिए। उत्पादक अपने उत्पाद की जानकारी प्रस्तुत करता है और उपभोक्ता उस जानकारी के आधार पर अपनी आवश्यकता पूर्ति करता है। आजकल प्रस्तुत किए जाने वाले विज्ञापनों में वास्तविक जानकारी नदारद रहती है। ऐसी परिस्थिति में उपभोक्ता को सतर्क रहने की आवश्यकता है। केवल लुभावने और आकर्षक विज्ञापन वस्तु खरीदने का आधार नहीं होना चाहिए। विज्ञापन में वस्तुओं के गुणों को बढ़ा चढ़ाकर दर्शाया जाता है तथा उसके मूल्य में भी वृद्धि कर दी जाती है। सावधान रहकर की हम विज्ञापनों के माया जाल से बच सकते हैं।
कनक गहलोत
कक्षा- X
द फैबइंडिया स्कूल
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