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Friday, 29 September 2023

जीवन का तथ्य - Saikiran Sahu

 जीवन का तथ्य 

निडर बन जीना है  हमें इस दुनिया में ,

चाहे कितनी भी मुश्किलें आ जाए सामने 

चाहे दुनिया अँधेरे से भर जाए 

या भर जाए  मनुष्यों के अनर्थ कार्यों से परंतु 

एक दीया भी न हमने ऐसा देखा जिसने,

अपनी रोशनी से अंधकार को ना हराया 

निडर होकर जीना है हमें इस दुनिया में।  


निडर बन के जीना है हमें इस दुनिया में 

चाहे श्री राम की तरह जाना पड़े वनवास में 

या पड़ जाए धरती पर घोर संकट,

या आ जाए  जीवन-मृत्यु की स्थिति हमारे सामने,

परंतु एक जीवन ही क्या जिसमें ना देखना पड़े ,

उत्तार-चढाव हमें या, उठाना ना पड़े हमें एक पर्वत 

श्री हनुमान की तरह इस युग में 

 निडर बन के जीना है हमें इस दुनिया में । 


                                                                             - साई किरण साहू -

Saikiran studies at Gyanshree School Noida, one of our top-performing schools. #GoodSchoolsAlliance

Wednesday, 6 September 2023

भूल मत, प्यारे - रेवीदा भट्ट

Picture Courtesy: https://greatergood.berkeley.edu/article/item/how_gratitude_changes_you_and_your_brain
  
भूल मत, प्यारे - 
A poem about Gratitude & it’s importance.

यूँ चलता है आज सिर उठाकर,
पीछे भी देखा कर कितनों ने हाथ बटाया है 
देखता है आज इस ज़मीं के ऊपर 
भूल मत किसी ने तुझे खड़ा होना भी सिखाया है। 

चलता बना घर से,
अब समय था विद्यालय जाने का,
वही बस्ता लिए जिसमें डब्बा माँ ने भिजवाया था,
तीन-चार घंटे के लिए ही,
झुण्ड से बिछड़े हए परिंदे जैसे रहना-
वह भी एक ज़माना था। 

धीरे-धीरे बनाये दोस्त जिनका साथ मिलना ही 
समय का खज़ाना था। 
भूल मत, ए परिंदे, वह भी एक ज़माना था 
जब घर से बाहर रहना भी 
लगता घर के प्यार में समाना था,
भूल मत उन्हें जिन्होंने तुझे घर से दूर तेरा एक और घर बनाया था। 

अक्षरों का ज्ञान नहीं,
कलम के इस्तेमाल से अनजान,
भूल मत ज्ञानी, किसी ने तुझे कलम पकड़ना क्या,
कलाम के बारे में भी पढ़ाया था,
तभी जीवन में आया ज्ञान का अभिमान था। 

कभी दोस्तों से लड़कर, घर आकर 
प्यार तो तूने उन्हीं बाहों में पाया था,
जिनमें तूने अपना जीवन सजाया था,
माँ की ममतामयी नज़रों और पिता के रक्षात्मक स्वभाव 
में ही पाया था। 

कभी झगड़ा सुलझाया तो कभी सही दोस्त चुनना सिखाया। 
बढ़ता गया तू आगे, लेकर अपना परिवार जब अपनेपन का आभास तूने 
कुछ लोगों में ही पाया था। 
आज पीछे छोड़ गया तू उन्हीं को जिन्होंने वर्षा में अपनी छतरी के अंदर 
खींचकर तुझे भीगने से बचाया था। 

यही तो इंसान की प्रवृत्ति है,
भूल जाता है कितनों ने उसे खिलाया है,
बस चलता जाता है उस राह पर,
यह भूलकर कि कितनों ने उससे हुई भूल को भुलाया है,
कितनों ने उस पर रौशनी बरसाई और 
कितनों ने उसे रास्ता दिखाया है,
जीने की चाह का उसमें बीज उगाया है। 

भूल मत, तुझे कामयाब होता देख
कितनों का दिल गर्व की लहरों से झूमेगा 
जब तेरा अपना, तुझ बीज को 
कभी एक हरे-भरे वृक्ष के रूप में देखेगा। 

यूँ चलता है आज सिर उठाकर,
भूल मत प्यारे,  कितनों ने तुझे जीना भी सिखाया है। 

Reveda Bhatt
Grade X || The Aryan School

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