प्रश्न उठा यह बारम्बार l
जिसने की रचना इसकी
कहां छिपा वह चित्रकार l l
नील गगन को छूती जैसे
यह ऊँची पर्वत माला l
लहर लहर बहती नदियां
जैसे चंचल सी बाला l l
चूृं चूृं चिड़िया के स्वर
भवरों के गुंजार कही l
और गरजते मेघ छोड़ते
वर्षा की फुहार कहीं l l
मोर नाचते झूम- झूम कर
पाकर प्रकृति का उपहार l
जिसने की रचना इसकी
कहाँ छिपा वह चित्रकार l l
हरियाली की चुनरी ओढ़े
चाँद सितारों का आंचल l
पायल की रून झुन सी लगती l
बहते झरने की कल कल l l
वन उपवन सब करते हैं
प्रकृति का श्रृंगार l
जिसने की रचना इसकी
कहाँ छिपा वह चित्रकार l l
यशराज शर्मा
आठ (डी) Gyanshree School