लोग इतने स्वार्थी हो गए हैं कि वह अपने अलावा दूसरों के बारे में बुरा ही सोचते हैं। ऐसा लिखने के पीछे भी तथ्य है, कोरोना महामारी के दौरान लोग दवाइयों की कालाबाजारी कर रहे हैं, जमाखोरी कर रहे हैं, इतना ही नहीं अन्य वस्तुओं की भी जमाखोरी करके उसको ऊँचे दाम पर बेच रहे हैं।
मनुष्यता केवल बोलने से नहीं होती, यह एक भावना है जो किसी की परेशानी देखकर आती है और उसकी सहायता के लिए जब हम सबसे पहले खड़े रहे, तब समझ सकते है कि हममें मानवता है। आज जानवरों में मनुष्य से कहीं ज्यादा अपनापन है क्योंकि जानवर अपने स्वार्थ में किसी का बुरा नहीं सोचते और यदि हमें अपनी आने वाली समय को उज्जवल करना है तो आज ही हमें मनुष्यता का सही अर्थ समझना होगा। इस कठिन दौर में यह आवश्यक है कि हम हर इंसान के लिए मदद करने को तत्पर रहें। यह महामारी शायद हमें यही सीख देने के लिए है।
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और वह समाज में रहता है। जब समाज में रहता है तो एक दूसरे की मदद करना भी आवश्यक है, तभी तो उसकी सामाजिकता दिखेगी। जब हम संकट में होते हैं तब मदद की गुहार लगाते हैं, ललचाए हुई निगाहों से चारों तरफ मदद की आस करते हैं। लेकिन कभी सोचा है जब कोई और संकट में था तब हमने मदद की या नहीं। स्वयं के लिए चिल्लाने लग जाएँगे परंतु अपनी तरफ से देने का प्रयास नहीं करेंगे।
समय की गरिमा को समझते हुए हमें एक दूसरे की मदद करने की आवश्यकता है। स्वार्थ सिद्धि छोड़कर एकजुट हो जाएँ तो यह महामारी दुम दबाकर भागेगी और मनुष्यता विजई होगी।
कृतिका राजपुरोहित
कक्षा- ग्यारहवीं (विज्ञान)